भगवत गीता प्रमुख अध्याय एवं उपदेश विशेषता

 

                भगवत गीता स्लोक




अर्जुन उवाच: दृष्ट्वा एतँ स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌। सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति॥

श्री भगवानुवाच: कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥

अधर्मभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः॥

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन। नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम॥

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः। धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्‌॥

सञ्जय उवाच: एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्‌। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदंतमिदं वचः॥


भगवद् गीता में कुल 18 अध्याय हैं। निम्नलिखित हैं भगवद् गीता के अध्यायों के नाम हिंदी में:



1. अर्जुनविषाद योग



2. सांख्या योग



3. कर्म योग



4. ज्ञान कर्म संन्यास योग



5. कर्म संन्यास योग



6. अत्याश्रयोपनिषद योग



7. ज्ञान विज्ञान योग



8. अक्षरब्रह्म योग



9. राजविद्याराजगुह्य योग



10. विभूति योग



11. विश्वरूप दर्शन योग



12. भक्ति योग



13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग



14. गुणत्रय विभाग योग



15. पुरुषोत्तम योग



16. दैवासुरसम्पद्विभाग योग



17. श्रद्धात्रय विभाग योग



18. मोक्षसंन्यास योग



भगवद गीता हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रंथों में से एक है जो महाभारत के युद्ध के दौरान कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई एक दैवीय संवाद पर आधारित है। यह उपदेश हमें मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए एक उच्चतम ज्ञान और नैतिकता प्रदान करता है।



भगवद गीता के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं:



कर्मयोग: गीता के अनुसार, कर्म योग उस कर्म को करने का तरीका है जो हमें शुद्धि, स्वास्थ्य और समाधान प्रदान करता है। यह योग भावना और कर्म के फल को त्याग कर उसके लिए सबकुछ ईश्वर को समर्पित करने का तरीका है।



ज्ञानयोग: गीता का यह उपदेश हमें आत्मा और परमात्मा के बीच ज्ञान की प्राप्ति के लिए समर्थ बनाता है। यह उन लोगों के लिए उपयोगी है जो अपने जीवन को उच्चतम समझ और उसे एक समझदार तरीके से जीना चाहते हैं।




भगवद् गीता हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है जो महाभारत के शांति पर्व में उल्लेखित है। यह ग्रंथ महाभारत के मुख्य पाठकों के बीच भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेशों का संग्रह है।



भगवद् गीता में अध्यात्म एवं दार्शनिक विषयों पर गहन विचार हैं, जिनमें मन, बुद्धि, जीवन का उद्देश्य, कर्म और उसके फल, ईश्वर, संसार और मोक्ष जैसे विषय शामिल हैं। इसके उपदेश विश्वव्यापी हैं और हर व्यक्ति के जीवन में उपयोगी होते हैं।



भगवद् गीता का विशेषता है कि इसमें वेद, उपनिषद और ब्राह्मण जैसे पूर्व ग्रंथों का संग्रह है, जिससे इसमें दार्शनिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों का संकलन हुआ है। इसके उपदेश जीवन के हर पहलू में लागू होते हैं और सभी धर्मों के लोग इससे प्रभावित होते हैं।







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